मनोज मीक
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो रेट को 5.5% पर स्थिर बनाए रखने का निर्णय ऐसे समय पर आया है जब वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और घरेलू मांग दोनों को संतुलन की आवश्यकता है। यह निर्णय संकेत देता है कि आरबीआई फिलहाल स्थिरता को प्राथमिकता दे रहा है, लेकिन यह न तो मांग को गति देने वाला है, न ही मझोले और टियर-2 शहरों के लिए प्रेरक।
विगत कटौतियों ने भोपाल जैसे उभरते शहरी केंद्रों में आवासीय मांग को सशक्त किया है। भोपाल जैसे शहरों में जहां पहली बार घर खरीदने वालों की बड़ी आबादी है और आवासीय मांग पिछले कुछ वर्षों में नीतिगत भरोसे पर टिकी रही है, ब्याज दरों में राहत की अपेक्षा थी। यह निर्णय उस जनसांख्यिकीय वर्ग की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता, जो मिड-इनकम शहरों और अफोर्डेबल हाउसिंग का असली आधार हैं।
त्योहारों के मौसम में यदि कोई अगला दर कट आता है, तो यह नए खरीदारों के लिए वरदान साबित होगा, आत्मनिर्भर भारत की शहरी आवास नीति को भी बल मिलेगा। इससे हमारे जैसे राज्यों में निर्माण गतिविधि और रोजगार दोनों को संबल मिलेगा।
नीतिगत आग्रह:
• अगली मौद्रिक समीक्षा में कम से कम 50 बेसिस पॉइंट की कटौती की जानी चाहिए
• मिड-सेगमेंट और अफोर्डेबल हाउसिंग पर आधारित स्थानीय बैंकों के लिए ब्याज सब्सिडी योजना लाई जानी चाहिए
• क्रेडाई जैसे संगठनों से लगातार नीतिगत फीडबैक लेने की प्रणाली विकसित होनी चाहिए
(लेखक ‘कमाल का भोपाल’ अभियान के फाउंडर मेंबर और क्रेडाई भोपाल अध्यक्ष हैं। यह उनके निजी विचार हैं)
